आम सर्वप्रिय फल है। सब कोई इसे बड़े प्रेम से खाते हैं और इसे सब फलों में श्रेष्ठ मानते है। इसीलिए इसको नृपप्रिय, फलश्रेष्ठ , फलाविराज कहते है। मनुष्यों के आलावा तोता , कोयल आदि पक्षियों को भी यह बहुत प्रिय होता है। अतः इसे पिकवल्लभ , पिकप्रिय , पिकमहोत्सव , कोकिल बन्धु आदि नाम दिये गए है। कहा जाता है की जिस प्रकार स्वर्ग में अमृत है उसी प्रकार पृथ्वी में आम्रफल है। आम प्रायः सब फलों की अपेक्षा उत्तम एवं अधिक गुणकारी तथा अनेक रोगों का नाशक समस्त इन्द्रियों को तृप्त करने वाला बलदायक , अत्यंत वृष्य , कामशक्तिवर्धक है। इतने गुणों वाला फल होने से ही इसको फलाधिराज का नाम दिया गया है।
यह माना जाता है कि संसार का कोई भी फल रस , वीर्य और व्रण में आम्र के पके फल की तुलना नहीं कर सकता। इतने पर भी विशेषता यह है की आम्र फल सहज में बहुत सुलभ मूल्य में ही सबको प्राप्त होता है। इसमें इतने पौष्टिक तत्व है की एकमात्र अच्छे पके हुए मधुर आम्र फलों को खाने से भी बहुत समय तक जीवन लीला उत्तम प्रकार से चल सकती है। इन सब कारणों से ही आम को फलों की श्रेणी में उत्तम स्थान प्राप्त है।
गुणकर्म
अतिसार – आम्र वृक्ष की अन्तर छाल 50 ग्राम जबकुटकर 500 ग्राम जल में डालकर काढ़ा बना ले। ठंडा होने पर उसमे थोड़ा शहद मिला कर पीलाने से अतिसार में लाभ होता है।
आम की गुठली की गिरी 10 ग्राम के दो भाग करें। एक भाग को पानी में पकावें , दूसरे भाग को कच्चा भी रखें। फिर दोनों भागों को मिला कर पीस लें। इसे दिन में ३ बार दही के साथ सेवन करावें। पथ्य में चावल और दही दें। अथवा – गुठली की गिरी , बेलगिरी और मिश्री समभाग का चूर्ण , मात्रा ३ से ६ ग्राम तक जल के साथ सेवन करावें।
बच्चों के अतिसार में – गुठली की गिरी भूनकर वर्ण कर लें। उचित मात्रा में शहद के साथ चटावें। यदि रक्तातिसार हो तो साथ ही साथ आम के पेड़ की अन्तरछाल को दही में पीस कर पेट पर लेप करें।
संग्रहणी – आम , आमड़ा और जामुन के पेड़ों की छालों को जौकुट कर एक पात्र में 160 ग्राम लेकर 4 किलो जल में पकावें। आधा जल शेष रहने पर छान लें और इस भुने हुए जल में 160 ग्राम चावल मिला पकावें। इस नुस्खे का प्रयोग करने से संग्रहणी में बहुत लाभ होता है। अथवा -मीठे आमों का ताजा रस 50 ग्राम में मीठा दही 10 ग्राम और अदरक का रस एक चम्मच पिलावें। इस प्रकार दिन में दो बार दें। इस प्रयोग में आम 100 ग्राम तक एक बार में दे सकते है। कुछ दिनों में ही पुराने दस्त और संग्रहणी रोग ठीक हो जाता है।
खुजली – आम का बौर और आम की ताजी कोंपल 100-100 ग्राम , पके आम की गुठली की गिरी और आम की जड़ की छाल 60-60 ग्राम , लौह चूर्ण 40 ग्राम और पुराना गुड़ 5 किलो कूट पीसकर 10 किलो पानी में मिला चीनी या खांड के पात्र में भर कर रखें। प्रतिदिन प्रातः सायं आम की लकड़ी से हिला दिया करें। 15 दिन बाद रोज प्रातःकाल 3 छटांक छानकर उसमे 20 ग्राम मिला कर पीया करें। इस प्रयोग की सब तरह की खुजली समाप्त हो जाती है।
मधुमेह – आम के 10 ग्राम पत्ते को छाया में सूखा लें। इस पत्ते को 500 ग्राम जल में औटावें जब 100 ग्राम पानी रह जाय तो उतार लें। इस पानी को सुबह शाम पिलाने से मधुमेह रोग कुछ दिनों में दूर हो जाता है।
बवासीर – आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 10 से 15 रत्ती तक सेवन करें। बवासीर में ज्यादा खून गिरता हो तो आम के कोमल कोंपल 25 ग्राम कूटकर रस निकाल लें और उसमे उतनी ही मिश्री मिला कर पिलावें।
कृमि रोग – कच्चे आम की गुठली का चूर्ण 2 से 4 रत्ती तक दही या जल के साथ प्रातः सायं सेवन कराने से सूत जैसे कृमि नष्ट हो जाते है।
हिक्का या हिचकी – आम के हरे ताजे पत्ते और धनिया दोनों की कूट कर हुक्के में भरकर पीवें। अथवा – आम के पत्ते को चिलम में भरकर पीने से लाभ होता है
दन्त रोग – आम के पत्तों को जला काली रख को कपड़छान कर रखें। प्रातः सायं उंगली से दांत और मसूढ़ों पर मंजन करने से अथवा गुठली की गिरी के महीन चूर्ण का मंजन करने से दांत व मसूढ़ों के बहुत से रोग , यहां तक की पायरिया भी ठीक हो जाता है