क्षय रोग होने के एक या दो कारण नहीं है। क्षय रोग बहुत कारण से होता है यह रोग सिर्फ मनुष्य को ही नहीं होता है बल्कि क्षय रोग के शिकार पशु भी होते है। यदि क्षय रोग से पीड़ित गाय-भैंस का दूध स्वस्थ व्यक्ति को दिया जाय तो वह व्यक्ति क्षय रोग से पीड़ित हो जायेगा। इसलिए स्वस्थ पशु का दूध ही प्रयोग में लाना चाहिए। दूध लेने से पहले इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिए कि जिस पशु का दूध पिने के लिए अथवा अन्य किसी प्रयोग के लिए लिया जा रहा है, वह इस रोग ही नहीं बल्कि, किसी अन्य रोग से पीड़ित तो नहीं है। इसलिए क्षय रोग के रोगी को दिए जाने वाले दूध के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए। अन्यथा रोग से मुक्ति के बजाय रोग बढ़ता ही जायेगा।
रोगी के थूक-बलगम आदि से भी रोग का भयंकर प्रसार होता है। अत्यधिक गंदे, दूषित, सीलन भरे मकान अथवा स्थान आदि में रहने से इस रोग के होने की प्रबल सम्भावना रहती है। अक्सर सर्दी, खांसी, ज्वर का बने रहना, फेफड़ों में धूल-धुआं साँस के साथ जाकर जम जाने से यह रोग होता है। शोध बताते है कि कमजोर, कृशकाय और दुर्बल लोगों को यह रोग जल्दी होता है। अत्यधिक स्त्री प्रसंग करना, पौष्टिक भोजन का अभाव, बार-बार बीमार होते रहना, बीमार होने पर उसका उचित इलाज न हो पाना भी क्षय रोग को शरीर में जगह बनाने के लिए सीधा निमंत्रण देता है। ज्यादा मदिरा सेवन करना , शारीरिक क्षमता से अधिक काम करना, परिश्रम करना, एक के बाद एक अनेक संतानो को जन्म देना , क्षय रोगी के साथ रहना, सोना, खाना-पीना, शारीरिक सम्बन्ध बनाने से भी क्षय रोग हो जाता है। वंश परंपरा से भी यह रोग होता है।
इसके अतिरिक्त खान-पान का दूषित रहना, बदपरहेजी करना, भूखे रहना, अनाप-शनाप बाजार की सड़ी-गली बासी पदार्थ खाना, चिंता करना, तनाव ग्रस्त रहना आदि कारणों से भी क्षय रोग होता है। क्षय रोग के कीटाणु रोगी के थूक से जमीन पर से होते हुए निरोगी व्यक्ति के शरीर में जाकर उन्हें क्षय रोगी बनाते है। थोड़े से स्थान पर बहुत सरे लोगों का रहना भी इस रोग का कारण है। इस रोग का समाज से सीधा सम्बन्ध है और समाज से ही इसको फैलने में मदद मिलती है। क्षय रोग के शोध से पता चला है कि गरीबी रेखा से निचे जीवनयापन करने वाले क्षय रोग के अधिक शिकार होते है। आर्थिक स्थिति का भी इस रोग से गहरा सम्बन्ध है। इस रोग के शिकार निम्न श्रेणी के लोग अधिक होते है। गरीबी को भी इसका एक कारण माना जाता है।
क्षय रोग का एक रोगी प्रतिदिन जो थूक और बलगम दिनभर में त्याग करता है। उसमें विश्व की सम्पूर्ण आबादी जितने कीटाणु मौजूद होते है। इस रोग का जीवाणु आसानी से जल्दी नहीं मरता है। साँस से इस रोग का प्रसार अधिक होता है। ठंडी और अंधेरी जगहें इस रोग के जीवाणु को पनपने के लिए पनाह देती है। खाने-पीने की वस्तुओं के पास यदि क्षय का रोगी खाँसता है तो वह खाने या पीने की वस्तु क्षय के कीटाणुओं से दूषित हो जाती है। इस दूषित भोजन को सेवन करने से ये कीटाणु शरीर में पहुँच जाते है और अनुकूल समय की प्रतीक्षा करके अपनी संख्या बढ़ाते रहते है और एक दिन अवसर पाकर हमला कर देते है। अस्पतालों के संक्रमण से भी यह रोग उपहार में मिल जाता है। क्षय रोगी के घाव-फोड़ों का संक्रमण अन्य लोगों को लग जाने से भी यह रोग फैलता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह रोग व्यक्तियों और पशुओं को तो होता ही है, साथ ही यह जलचरों और पक्षियों को भी होता है। मछलियों और पक्षियों का मांस जब पकाया जाता है, तब उनके कीटाणु मर जाते है और मनुष्य शरीर को विशेष हानि नहीं पहुँचाते। लेकिन गाय को यह रोग है और उसका दूध बिना उबाले ही पिया जाये तो निश्चय ही यह रोग आसानी से हो जायेगा। लेकिन यदि भली-भाँति उबला दूध प्रयोग किया जाय तो हानि की आशंका समाप्त हो जाती है। मक्खियाँ भी इस रोग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलाने में सहायक होती है। हालाँकि क्षय रोग का जीवाणु एक फुट से अधिक दुरी तक नहीं जा सकता। लेकिन हवा, धूल के कण, मक्खियों, कीट-पतंगों आदि से चिपककर यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुँच जाता है।