श्वेत और लाल दोनों प्रकार के अपामार्ग की जरियां पत्तों के डंठल के मध्य प्रदेश से निकलते है। वे दीर्घ , कर्कश, कटीली सी होती है। इसमें ही सूक्ष्म और कटि युक्त बीज के छोटे टनडुलार होते है। ये बीज धूसर वर्ण के छोटे चावल के दाने जैसे और स्वाद में कुछ तिक्त होते है। इसके फूल कुछ लाल हरे या बैगनी रंग के होते है। लाल अपामार्ग की डंडियां तथा मज्जरियां कुछ लाल अर्घ की और पत्तों पर लाल – लाल सूक्ष्म दाग होते है।
गुणकर्म
श्वेत अपामार्ग – तिक्त , कटु, उष्णवीर्य, पाचक, कफनाशक, ग्राही, वामक और अर्श, उदर रोग, कण्डु, आम और दूषित रक्त निवारक, बधिरता नाशक तथा विषनाशक है।
रक्त अपामार्ग – तिक्त, कटु, कफवातनाशक, वामक, संग्राही, ब्रण, खुजली, मेदरोग, हृद्रोग, आध्मान, शूल और विषनाशक है।
दोनों प्रकार के अपामार्ग अपने प्रभाव से शीघ्र प्रसवकारक, चूहे, कुत्ते, बर्र, आदि के विषों को हरण करने वाले है।
अपामार्ग के औषधीय गुण
अपामार्ग का रस तिक्त, कटु, गुण लघु, रुक्ष तीक्ष्ण; वीर्य उष्ण और विपाक कटु है। यह अग्निदीपक, शोधहर, पीड़ानाशक, विषघ्न, कृमिघ्न, कफनि:सारक, रक्तशोधक, हद्य, कासहर, मूत्रजनन, त्वच्य, रक्तवर्धक, रक्तस्तम्भक, व्रणरोपण, श्वासघ्न, ज्वरहर, विरेचक, काण्डूधन, मेदोहर, स्वेदजनन, अश्मरी नाशन, अम्लता नाशन, शिरो विरेचन अर्शोघ्न, दन्त्य और आर्तव नियामक कर्म सम्पादन करता है और उनसे सम्बन्धित विकारों में औषधीय उपयोग में आता है।
रोगों में प्रयोग
दमा – चिरचिरा की एक पत्ती, एक शंख का टुकड़ा, इसी पौधे की जड़ का टुकड़ा और कुछ मंजरियों को एक बड़े गिलास पानी भर कर मिला लेते है, फिर इसको किसी बर्तन में उबालते है और लगभग एक कप शेष रहने के बाद काढ़े को छान लिया जाता है। इसको पीने से दमा शांत होता है।
क्षुधा नाशक – चिरचिरा के बीजों को दूध में उबालकर ( पकाकर ) खिलाने से भस्मक रोग शांत होता है, भस्मक रोग अग्नि की विकृति है, जिसमे असामान्य रूप से जठराग्नि अत्यन्त तीव्र हो जाने से भोजन तुरन्त पच जाता है अर्थात खाया – पीया सब कुछ पेट की अग्नि की वैकारिक तीव्रता के कारण भस्म हो जाता है और क्षुधा वृद्धि असाधारण हो जाती है। अधिक भूख लगने की अवस्था में अपामार्ग का प्रयोग किया जाता है।
बवासीर – इस पौधे की बीजों को चावल के धोवन ( तण्डुलोदक ) के साथ पीस लेते है और इस मिश्रण को खुनी बवासीर ( रक्तार्श ) में सेवन कराते है , इससे खुनी बवासीर में खून आना ( रक्तस्त्राव ) बंद होकर आराम मिलता है।
पीलिया – पीलिया ( कामला ) में अपामार्ग मूल और शमी १० ग्राम को मिलाकर तक्र के साथ सेवन कराते है। इस प्रयोग से कामला, शोध ( शरीर में सूजन – सर्वांगशोध ) और पाण्डु रोगों में लाभ होता है।
पेट का दर्द – पेट का दर्द ( उदरशूल ) में अपामार्ग का प्रयोग करते है। इस वनस्पति के पंचांग का काढ़ा और पिप्पली मिलाकर घृत पाक कर लेते है और इस घृत का सेवन करते है। इससे पेट दर्द शांत हो जाता है।
दन्त रोग – अपामार्ग के पत्र, काण्ड का प्रयोग दन्त रोगों में किया जाता है। इसके पौधे की शाखा से दन्तधावन भी कर सकते है। अपामार्ग की दातौन करने से दन्त रोग, दांतों की शिथिलता ( दाँतों का हिलना ) , मसूढ़ों की शिथिलता, दाँतो-मसूढ़ों के विकार, पायरिया ( खून, मवाद आना ) , दंतशूल ( टीस ) , दांतों में पानी लगना आदि रोगों में लाभ होता है।
अनिद्रा – अनिद्रा की स्थिति में अपामार्ग को काकजंघा और कोकीलाक्ष के साथ काढ़ा बनाकर सेवन करें।