इमली
कच्ची इमली – अति खट्टी, भारी, गरम, रुचिकारक, मलरोधक, अग्निदीपक, वातनाशक, कफपित्तकारक, आंत्र-संकोचक, रक्तदूषक, आमकारक, विदाही है तथा वात और शूल रोग में पथ्य है
पकी इमली – मधुर, खट्टी, दीपन, रुचिकारी, रुक्ष, सारक, ह्रदय को हितकारी, गरम, मलस्तंभक, बस्तिशोधक तथा पित्त, दाह, व्रणदोष, अर्श, उदर रोग, तृष्णा, अतिसार, ग्रहणी, कृमि, कफवात और मद ( भांग आदि मदकारी वस्तुओं का मद ) नाशक है।
नोट – कच्ची इमली हानिकर होती है। पकी इमली जिनमें के प्रकृति के अनुकूल हो उन्हें ही सेवन करना चाहिए। अन्यथा दांत खट्टे हो जाते है, जबड़ा और सिर में वेदना तथा कभी-कभी ज्वर और श्वास कास भी उठ जाता है। जिन्हे यह सात्म्य हो उन्हें भी इसमें दशम भाग ( इमली 10 ग्राम हो तो 1 ग्राम ) नमक मिला कर सेवन करना अधिक हितकर होता है
रोगों में प्रयोग
वमन – इमली पेड़ की छाल की भस्म 1 भाग में 10 भाग पानी निथार लें और इसे 50-50 ग्राम की मात्रा में आधे-आधे घण्टे या एक-एक घण्टे से पिलाने से आमाशय की उत्तेजना से होने वाली खट्टी व उष्ण वमन बन्द हो जाती है। अपचजन्य या अम्लपित्तजन्य वमन में भी फायदा होता है। अम्लपित्त दशा में इसे प्रातः और भोजन के 2 घण्टे बाद पिलाने से जलनयुक्त वमन की शांति होती है।
लू लगना – पकी हुई इमली को अधिक पानी में घोलकर उसमें कपडा भिगोकर लू वाले रोगी को उसी कपडे से उड़ा दें तथा इमली का पानी ऊपर से छिड़कते रहें। कठिन से कठिन लू का मारा रोगी चैतन्य लाभ करता है। साथ ही साथ इमली के गूदे को पानी में गाढ़ा घोल कर रोगी के हाथ पैरों पर लेप करें, इससे हाथ पैर की जलन दूर होती है। इस गूदे का गाढ़ा घोल बालों से रहित सिर पर लगा दें तो लू के असर से होने वाली बेहोशी दूर हो जाएगी।
शोध , चोट – इमली के पत्तों के साथ मालकांगनी के बीजों को पीस आग पर पका पुल्टिस बांधने से वायु की सूजन, चोट और मोच से उत्पन्न हुई शोध एवं वेदना दूर हो जाती हजै। पत्तों और बीजों को समभाग लेकर पत्थर पर महीन पीस थोड़ा जल मिला पकाना चाहिए। लेही के समान गाढ़ा होने पर गरम-गरम बांधना चाहिए।
कंठ या स्वरयंत्र की सूजन – इमली 6 ग्राम को 1 किलो जल में औटावें। आधा शेष रहने पर छानकर उसमें 20 ग्राम गुलाबजल मिला कर कुल्ले कराने से लाभ होता है।
उदरशूल और अफरा – इमली वृक्ष की छाल की श्वेतभस्म 2 ग्राम तक शहद के साथ आवश्यकतानुसार 1-1 घण्टे से 2-3 बार चटाने से उदरशूल, अफरा, अपचन और मलावरोध दूर हो जाता है। उक्त छाल को सेंघानमक के साथ मटकी में भरकर जला लें। श्वेत भस्म जो जाने पर चूर्णकर काम में लावें। यह नुस्खा समस्त वायु के विकार और हैजे में भी लाभकारी है।
खांसी – क्षय की खांसी, जब कफ में थोड़ा-थोड़ा रक्त आता है, इमली के बीजों को तवे पर सेंक ऊपर से छिलके निकाल कपड़छन चूर्ण कर रखें। मात्रा- 2 ग्राम तक घृत और शहद के साथ दिन में 3-4 बार चटाने से शीघ्र ही खांसी का वेग शांत होता है, कफ सरलता से निकलने लगता है, रक्तस्त्राव और पीला कफ गिरना दूर हो जाता है। कफ सफेद हो जाने पर सितोपलादि चूर्ण या दूसरी औषधि का उपयोग करें।
छोटे बच्चों को कभी-कभी मुंह के अंदर की तालू के पास वाली जीभ बढ़ जाने से भयंकर खांसी पैदा होती है। ऐसी अवस्था में इमली के बीजों को जल के साथ पत्थर पर घिसकर उसका गाढ़ा लेप तालू पर किया जाय तो लेप के सूखते ही अन्दर की जीभ स्वस्थान पर बैठ जाती है और खांसी आना बन्द हो जाता है।
नेत्र रोग – इमली के ताजे पत्तों को धोकर रेंडी के पत्तों में लपेटकर गोला सा बना लें और उस मिट्टी का लेप कर कण्डों की मंदाग्नि में पकावें। जब ऊपर की मिट्टी का रंग लाल हो जाय तो गोले में से इमली के पत्तों को निकाल पीसकर रस निकाल लें। कांसे के पात्र में यह रस डालकर उसमें समन्दर फल घिस कर आंख में लगाने से पानी बहना, नेत्र की खुजली और अधिमनथ का नाश होता है।