कुष्ठ रोग से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

वीर्य में यदि कुष्ठ के कीटाणु शामिल हो जाएं तो संतान जन्मजात कुष्ठ रोगी होती है।
लाल, काले रंग का कुष्ठ हो गए हो तो उसे विस्फोटक कुष्ठ कहते हैं।
कुष्ठ के घावों में यदि कृमि पड़ गए हो तो उसको असाध्य समझ कर छोड़ देना चाहिए।
यदि त्वचा हाथी की त्वचा की भांति कड़ी-कठोर हो जाए तो उसको गजचर्म कुष्ठ कहा जाता है।
पीड़ादायक, त्वचा कटी-फटी, सूखी, लाल हो तो इसे कपाल कुष्ठ समझना चाहिए।
कपाल कुष्ठ पित्त प्रकुपित हो जाने के परिणामस्वरुप होता है।
विचर्चिका कुष्ठ तीनों दोषों के प्रकुपित हो जाने के परिणामस्वरुप होता है। काकन कुष्ठ तीनों दोषों के प्रकुपित हो जाने के फलस्वरूप होता है।
दीर्घकालीन संपर्कजन्य कुष्ठ रोग एक चर्म रोग मात्र है।
गलित कुष्ठ में हाथ-पैरों की अंगुलियाँ गलने लगती है।
संसार में भारत कुष्ठ रोगियों का सबसे बड़ा देश है।
कुष्ठ पैतृक रोग नहीं है लेकिन कुष्ठ रोगी माता-पिता के संपर्क से बच्चों को कुष्ठ का संक्रमण लग जाता है।
कुष्ठ का प्रकोप चर्म में जिस स्थान पर होता है, वहाँ की त्वचा मुर्दा हो जाती है। स्पर्श ज्ञान नष्ट हो जाता है।
कुष्ठ रोगी पक्षाघात का शिकार भी हो सकता है।
कुष्ठ रोगी फेफड़े में जलन और प्रदाह के कारण परलोक भी सिधार जाता है। कुष्ठ रोगी का जीवन ज्यादा लम्बा नहीं होता है, कुष्ठ की चिकित्सा में जितनी देरी होती जाएगी, जीवन उतना ही छोटा होता जाता है। जिसको एक बार कुष्ठ रोग हो जाए वह जीवन भर उसको वहन करता है।
अलस कुष्ठ में लाल खुजलीयुक्त फुंसियाँ शरीर पर उभर आती है।
आयुर्वेद मतानुसार श्वेत कुष्ठ या सफेद दाग भी एक प्रकार का कुष्ठ ही है।
कुपथ्य के कारण कुष्ठ रोग भोगना पड़ता है।
एक से अधिक स्त्रियों अथवा एक से अधिक पुरुषों के साथ सहवास करने वाले वेश्यागामी लोग निश्चय ही आगे चलकर कुष्ठ के शिकार हो सकते हैं। अपने से अधिक आयु की स्त्री के साथ सहवास करने से तीनों दोष प्रकुपित हो कुष्ठ रोग को पैदा करते हैं।
वेगों को रोकने से कुष्ठ रोग होता है।
मंडल कुष्ठ कफ प्रकुपित हो जाने के बाद उभरता है।