
कमर दर्द का उपाय – कमर दर्द मूलतः स्वयं कोई स्वतंत्र रोग नहीं अपितु शरीर में व्याप्त अन्य रोगों का एक कारण भर है। अतः कारण की चिकित्सा करने पर कमर दर्द अपने आप समाप्त हो जाता है। इस रोग की प्रारंभिक चिकित्सा कब्ज दूर करने की होती है। कब्ज के कारण यदि कमर दर्द हो रहा होगा तो कब्ज दूर होते ही सामान्य हो जायेगा। एक्सरे से सही निदान संभव है। यदि टी बी का ज्ञान हो तो शल्य चिकित्सा और क्षय रोग से संबंधित आवश्यक औषधियाँ प्रयोग कराने से रोग का नाश हो जायेगा। पुराने रोग में प्रयोग करने के लिए ‘बेल्ट’ उपलब्ध है जो आवश्यकतानुसार प्रयोग की जा सकती है। ‘बेल्ट’ प्रयोग करने से कमर दर्द नहीं होता।
यदि रोगी का शरीर भारी है, अनावश्यक चर्बी है तो यथासंभव औषधियों तथा व्यायाम आदि से शरीर का भार कम करने का प्रयत्न करना हितकर रहता है। गर्भाशय, डिम्ब प्रणाली, मूत्राशय आदि के कारण होने वाले कमर दर्द की चिकित्सा इन रोगों का समूलनाश किए बिना नहीं की जा सकती। कमर दर्द का समूल नाश करने के लिए योगासन और योग क्रियाओं का सहारा तो लिया जा सकता है, लेकिन ध्यान रखें- ‘योगासन’ अपनी मर्जी से कभी नहीं करने चाहिए। बल्कि किसी योगाचार्य या सिद्ध प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करने चाहिए।
दर्द दबाने के लिए पीड़ानाशक औषधियाँ केवल सामान्य या साधारण अवस्था के रोग में ही लाभ प्रदान कर सकती हैं। जटिल रोग में इनसे स्थाई लाभ की आशा कदापि नहीं की जानी चाहिए।
सामान्य कमर दर्द हो तो गर्म पानी की थैली से वेदना स्थल की सिंकाई करना बेहतर रहता है। सरसों के तेल में लहसुन को भूनकर हल्की गर्म-गर्म मालिश कराना श्रेष्ठ रहता है। कटि वेदना हो तो रोटी पकाने वाले तवे को गर्म कर लें उसके बाद उसी तवे को किसी बोरे अथवा किसी मोटे कपड़े में लपेट कर रोगी की कमर के नीचे रखकर सिंकाई करने से लाभ होता है।
कमर दर्द का उपाय — रोगी को ठंडी शीतल वस्तुयें कदापि नहीं खाने देनी चाहिए। वातकारक वस्तुयें प्रयोग करने से रोग बढ़ता है। कब्ज का नाश पहले करना अतिशय, आवश्यक होता है। लगातार कब्ज रहना उचित नहीं है। ईसबगोल की भूसी रात को सोते समय दूध में डालकर सेवन कराना ही उपयोगी है। गुदा में प्रयोग की जाने वाली ग्लीसरीन की बत्ती भी प्रयोग कराई जा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त कमर दर्द कब्ज के कारण होता हो तो त्रिफला प्रयोग कराया जा सकता है। ठंड लगकर कमर दर्द होता हो तो रोगी को पर्याप्त कपड़े पहनने का निर्देश दें। शीलन युक्त ठंडे कमरे में शयन करने की सलाह कदापि न दें। रोगी को नंगे शरीर कभी नहीं रहना चाहिए। रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए। रोग यदि तीव्र अवस्था का हो तो बिस्तर पर ही मल मूत्र त्याग की सलाह देनी चाहिए। भारी भरकम सामान, पानी से भरी बाल्टी या अन्य काम जिसमें भारी सामान उठाने आदि की आवश्यकता हो, सख्ती से बंद करा दें। रोगी को हल्का सुपाच्य भोजन देना चाहिए। गुरु पाकी पदार्थ, गरिष्ठ भोजन कदापि नहीं देना चाहिए। वात कारक पदार्थ प्रयोग करना हितकर नहीं है। तले-भुने, मिर्च-मसालेदार, बासी, चटपटे, खट्टे-मीठे, अधपके पदार्थ कदापि न दें। वात रोगों का चिकित्सा क्रम अपनाना उचित रहता है।
अपचन, अफारा, गैस के विकार, अजीर्ण आदि हों तो सर्वप्रथम इन दोषों को दूर करायें। आम दोष का पाचन और अग्नि प्रदीप्त करने की चिकित्सा करें। गर्म दूध, हरी साग सब्जी, ताजे फल, पुराने चावल दें। नए चावल देना उचित नहीं है। चारपाई की अपेक्षा लकड़ी के कठोर तख्त पर लेटना हितकर रहता है। कमर में बेलाडोना प्लास्टर अथवा आवश्यकतानुसार कोई क्रीम लोशन प्रयोग किया जा सकता है।
कमर दर्द का उपाय – प्रातः काल और रात के भोजन के पश्चात खुली हवा में घूमना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद होता है। इससे बिना औषधि के अनेक रोगों में लाभ हो जाता है। कमर के दर्द में हालांकि जिस औषधि का अधिकांशतः प्रयोग किया जाता है उससे स्थाई लाभ की आशा नहीं की जा सकती। किसी भी रोग के इलाज में कारण की तलाश करना अधिक महत्वपूर्ण होता है। अतः बिना कारण तलाश किए कमर दर्द की अथवा अन्य औषधियाँ सेवन कराना उचित नहीं होता। आजकल तेज असरकारक औषधियाँ उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से तत्काल किसी भी प्रकार का, किसी भी कारण से होने वाला दर्द नष्ट हो जाता है। लेकिन इन औषधियों का प्रभाव भी स्थाई नहीं होता। इनका प्रभाव खत्म होते ही दर्द पुनः प्रारंभ हो जाता है। अतः कमर दर्द को जड़ से नष्ट करने से पहले उसका कारण तलाश करना उपयुक्त है। रोग के कारण को नष्ट करने वाली औषधियाँ देने के साथ-साथ दर्दनाशक औषधियाँ प्रयोग करना अधिक लाभप्रद रहता है। इससे मूल रोग और वेदना दोनों नष्ट हो जाते हैं।
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