मुँहासे का कारण ! कील-मुँहासे होने का कारण

कील-मुहाँसे,acneकील-मुँहासे का कारण

मुँहासे का कारण – कील-मुहाँसे एक आम रोग या दोष है। जिसको अधिकाँश युवा अवस्था के लड़के-लड़कियाँ झेलते हैं। कील-मुँहासों  के शिकार युवकों की अपेक्षा युवतियाँ अधिक होती है। युवक कील-मुँहासों से उतना भयभीत नहीं रहते जितना कि लड़कियाँ। इसका कारण है – स्त्रियाँ खुद को अधिक से अधिक सुंदर दिखाने का मोह पाले रहती है और चेहरे पर एक-दो कील उभरते ही परेशान हो जाती है।

युवक-युवतियाँ के समान रूप से युवावस्था में सताने वाले इस रोग के संदर्भ में किए गए शोध के आंकड़े बताते हैं कि यह रोग वसा ग्रंथियों के विकार तथा प्रणाली विहीन ग्रंथियों के असंतुलन का परिणाम है। हार्मोन के स्त्राव से उत्पन्न होने वाला विकार निश्चय ही इस रोग की जड़ में रहता है। लेकिन कारणभूत  कथित हारमोंस की सही-सही पहचान आज तक भी चिकित्सा विज्ञान के पास नहीं है। वैसे पुरुषों के एन्ड्रोजन अंडकोषों से निकलने वाले एक प्रकार के स्त्राव का अंतःस्त्राव और महिलाओं के प्रोजेस्टोन-डिम्ब ग्रंथियों के अंतःस्त्राव से उत्पन्न उत्पन्न होने वाले विकार को चिकित्सा वैज्ञानिक शंकित निगाहों से देख रहे हैं। अधिकांश चिकित्सा वैज्ञानिक इस दिशा में एकमत हैं लेकिन फिर भी अभी तक कोई ठीक-ठाक ठोस निष्कर्ष नहीं पा सके हैं। इसके अलावा भोजन संबंधी गड़बड़ी भी पाचन विकार, आंतों के विकार, अत्यधिक कसरत की ओर ध्यान देना आदि कारणों से कील-मुँहासों का निकलना संभव है। अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त पदार्थों का सेवन वैसे भी हितकर नहीं हैं तथा अन्य शोधों के बाद इस रोग की तह में अत्याधिक कार्बोहाइड्रेट और वसा का होना भी पाया गया है।

जो लोग अधिक वसा और कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ का सेवन करते है वैसे लोगों को कील-मुहाँसे होने की सम्भावना ज्यादा होता है। वसा और कार्बोहाइड्रेट का अधिक सेवन करने से शरीर इसका पाक नहीं कर पाता है और वसा और कार्बोहाइड्रेट कील-मुहाँसे के रूप में नजर आते है। कुछ लड़कियां अधिक मात्रा में क्रीम और लोशन का प्रयोग करती है और कुछ तो अलग-अलग क्रीम और लोशन का  चेहरे पर करती है। अलग-अलग क्रीम का प्रयोग करने से नुकसान भी हो जाता है। इससे त्वचा अवांछित पदार्थों से भर जाती है जो कील-मुहाँसे का निर्माण करती है।

इसमें दो मत नहीं हैं, कि युवावस्था में शरीर के अंदर बलवीर्य की वृद्धि तो होती ही हैं। कुछ वैज्ञानिक बलवीर्य की वृद्धि को भी कील-मुहांसों का कारण मानते है। युवावस्था में जब शरीर का बलवीर्य बढ़ता है तो उससे गर्मी पैदा होती है और वही गर्मी कील-मुहांसों के रूप में शरीर से बाहर निकलती है। अधिकतर युवावस्था के लोगों को कील-मुहांसों का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग को भी नहीं भी होता है। जरुरी नहीं है की जब बलवीर्य बढ़े तो सब लोग को कील-मुहाँसे हो जाए।

कील-मुहाँसे त्वचा की वसा-ग्रंथियों का सपूय शोथ है जो 14 से 22 वर्ष की आयु में होता पाया जाता है। त्वकवसीय तथा बालों के रोमकूप त्वक वसा से  बंद हो जाने पर त्वचा की पेशियों का तनाव बन जाता है। जिसके कारण ग्रंथियों का उत्सरण कम हो जाता है। उसके बाद धूल और गंदगी से कील बन जाती है। कील में ‘स्टेफिलोकोकस’ के संक्रमण से त्वकवसीय ग्रंथियों और आसपास के ऊतकों में शोथ उत्पन्न हो जाता है। कील-मुहाँसे अधिकतर चेहरे पर होते हैं, लेकिन कुछ लोगों को पीठ और छाती पर भी हो जाते हैं।

आँतों में होने वाले विकारों की वजह से भी कील-मुहाँसे होते हैं। कील-मुहाँसे तेल ग्रंथियों की प्रदाहयुक्त अवस्था होती है।

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