मुहाँसे के लक्षण ! कील-मुहांसे की पहचान कैसे करें

acne,kil muhanse,muhaseमुँहासे के लक्षण

मुँहासे के लक्षण – जमाना जैसे-जैसे तरक्की करता चला जा रहा है, वैसे-वैसे रोगों की बाढ़ सी आ गई है। आधुनिक सभ्यता के रंग में रंगे फितरती लोगों का रहन-सहन, खाना-पीना, उठना-बैठना, आचार-विचार में हुई तब्दीली इन रोगों की जड़ है।

कील-मुहाँसे पहले एक-दो दाने के रूप में निकलते है। फिर ये दाने कील बन जाते है। ये दाने पतले रहते है और यदि इसका इलाज नहीं कराया गया तो ये दाने मोठे हो जाते है। धीरे-धीरे ये पुरे चेहरे पर हो जाते है। कील-मुहाँसे होने पर युवक-युवतियाँ तनाव में आ जाते है। लड़के तो उतना तनाव में नहीं आते है जितना लड़कियां। कील-मुहाँसे होने पर लड़कियां बहुत परेशान हो जाती है उन्हें घर से बाहर निकलने में हिचक महसूस होती है। कुछ लड़कियां कील-मुहाँसे होने पर आत्मविश्वास खोने लगती है, कुछ लड़कियां अपना चेहरा दिखाने में शर्माने लगती है। कील-मुहाँसे उतना गंभीर रोग नहीं है जितना की हमलोग समझते है। कील-मुहाँसे से पीड़ित लोगों का पेट खराब रहता है उनकी पाचन शक्ति ठीक नहीं रहती है। कील-मुहाँसे होने से भूख भी कम जाती है। कुछ लड़कियां कील-मुहाँसे को हाथों से दबाकर फोड़ देती है, कील-मुहाँसे को फोड़ने से उसके दाग बन जाते है। कील-मुहाँसे को फोड़ देना स्थाई इलाज नहीं है।

अधिकाँश कील-मुँहासों से पीड़ित युवक-युवतियाँ पहले से ही कब्ज के शिकार रहते हैं। जमाने की भाग-दौड़, आपा-धापी, होड़ इसका प्रमुख कारण है। गरिष्ट, कच्चा-पक्का, मिर्च-मसालेयुक्त भोजन, खट्टे-मीठे, चटपटे हानिकारक भोज्य पदार्थ पेट की पाचन प्रणाली को तहस-नहस कर डालते हैं। कब्ज से अजीर्ण, अफारा, मंदाग्नि, अग्निमांद्य, गैस के विकार उत्पन्न होते हैं।  जिनका दुष्प्रभाव आँतों की कार्यक्षमता में अक्षमता और आगे चलकर रक्त, दिल और दिमाग पर पड़ता है। यकृत पर पड़ता है जिसके फलस्वरूप अनेक रोग पैदा होते हैं, जिनमें से कील-मुहाँसे एक हैं। कील-मुहाँसे युवावस्था का प्रतीक कहे जाते हैं। जिस युवक या युवती के चेहरे पर कील-मुहाँसे निकल आते हैं, उसको युवावस्था की दहलीज पर प्रवेश कर चुका समझा जाता है।  साधारण अवस्था में होने वाले कील-मुहाँसे के दाग धब्बे दूर हो जाते हैं। लेकिन जीर्ण अवस्था के गहरे और मोटे कील-मुहाँसे के दाग नहीं मिटते, बल्कि चेहरे पर जीवन भर चेचक के दागों की भाँति विद्यमान रहते हैं।

अक्सर देखा जाता है कि युवावस्था में प्रवेश करते ही जवान लड़के-लड़कियों के चेहरों पर फुंसियाँ-सी उभर आती हैं। जरूरी नहीं है कि कील-मुहाँसे चेहरे पर ही हो, ये पीठ, छाती और कंधों पर भी निकल आते हैं। कील-मुहाँसे अधिकतर अलग-अलग रहते हैं। मुँहासों के मुख पर अथवा नोक पर काले रंग की एक प्रकार की ‘डॉट’ सी रहती है। ये चर्म ग्रंथियों की नलिकाओं पर अपनी जड़ें जमाकर उभरते हैं। मुँहासों के इर्द-गिर्द लालिमा और शोथ होती है। जिसमें पीड़ा अनुभव होती है। यदि मुँहासों अथवा फुंसी को चारों ओर से पकड़कर दबाया जाए तो उसमें से एक पीला अथवा सफेद कील अथवा डंटल-सा निकलता है जिसका ऊपरी सिरा काला रहता है। इसको अंग्रेजी में ‘एक्ने पेप्यूलोजा’ कहा जाता है। कभी-कभार यह काफी गहराई में रहता है और फूटकर कील को बाहर ढकेलता हुआ निकलता है। इसमें काफी पीड़ा होती है और चर्म पर निशान बन जाता है। कुछ लोगों के चेहरों पर इतने गहरे मुँहासे निकल आते हैं कि पूरा चेहरा कुरूप और भद्दा नजर आने लगता है।

अगर आपके मन में कोई भी सवाल या कोई विचार है तो निचे Comment Box में लिखें। दोस्तों अगर आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया है तो Facebook और Whatsapp पर जरूर शेयर करें। धन्यवाद

Other Similar Posts यह भी पढ़े

गुप्तांग के बाल हटाने के 5 भयंकर नुकसान

मॉर्निंग वॉक करने के 10 अचूक और लाजवाब फायदे

सिगरेट छोड़ने के 20 अचूक तरीके

सिगरेट पीने के 10 नुकसान