कुष्ठ रोग का कारण ! कुष्ठ रोग कैसे फैलता है

कुष्ठ रोग का कारण

कुष्ठ रोग का कारण ! शोध-अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को अधिक होता है। इस रोग के कीटाणु शरीर की कटी-फटी त्वचा से लेकर शरीर में प्रवेश करते हैं। यह भयंकर छूत का रोग है। यह रोगी की पीप, थूक तथा बलगम आदि के संपर्क में आने मात्र से हो सकता है।

स्वस्थ व्यक्ति यदि रोगी के साथ रहता है तो जल्दी ही वह भी कुष्ठ रोग का शिकार हो जाता है। लेकिन इसके विपरीत ऐसे मामले भी देखने आए हैं कि जब कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी कुष्ठ रोगी के संपर्क में रहता है तो तुरंत बाद वह संक्रमण का शिकार नहीं होता। परंतु ऐसा व्यक्ति कुछ महीनों के बाद या वर्षों बाद भी कुष्ठ का शिकार हो सकता है।

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कुष्ठ रोग से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

कुष्ठ रोग के प्रमुख लक्षण

कुष्ठ रोगी माता का पुत्र माता के संपर्क, माता का दूध पीने, माता द्वारा चूमने आने के कारण आगे चलकर कुष्ठ रोगी बन जाता है। पति-पत्नी के एक दूसरे से संपर्क करने, यौन संबंध करने, एक दूसरे के घावों की मवाद-पीप, रक्त आदि लग जाने से रोगी बन जाते है। वैसे देखा जाए तो शिशु अवस्था में कुष्ठ का संक्रमण जल्दी लग जाने का खतरा बना रहता है। क्योंकि शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता वयस्कों की अपेक्षा काफी कम होती है। इस रोग के कीटाणु स्वस्थ शरीर की त्वचा में प्रवेश करके अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। जैसे ही उनको अपने अनुकूल परिस्थितियां प्राप्त होती है, वे कुष्ठ रोग पैदा करके प्रकट हो जाते हैं।

घनी-सघन बसी बस्तियां में साफ-सफाई की उचित व्यवस्था का ना होना कुष्ठ के कीटाणुओं को पनपने देने के लिए उपयोगी अनुकूल होता है। अतः बस्तियों की साफ-सफाई की ओर ध्यान देना नागरिक का प्रथम कर्तव्य है।

एक साथ अनेक लोगों द्वारा एक ही थाली में खाना खाना, हुक्का पीना। बीड़ी- सिगरेट तथा चिलम पीना भी उचित नहीं है। ये कुष्ठ को पनपने देने की अनुकूल परिस्थितियां भी बन सकती है। कोई ऐसा मनुष्य जिसके शरीर में गुप्त रूप से कुष्ठ का कीटाणु निवास कर रहा होता है, वह इस प्रकार सामूहिक जूठन से एक मनुष्य से कई मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करके उन्हें रोग ग्रस्त कर देता है। मनुष्य के शरीर में जाकर यह गुपचुप अपना फैलाव करता रहता है। रोगी और रोग फैलाने वाले दोनों को इसका जरा सा भी आभास नहीं होने पाता। जब तक रोग का पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

व्यभिचार में रत रहने वाले जो लोग एक से अधिक औरतों के साथ संभोग करते हैं, वे इस रोग से ग्रस्त हो सकते हैं। जो लोग बार-बार यौन रोगों के शिकार होते हैं, वे भी इस रोग को भोगते हैं। अत्यधिक मेहनत करना अनुचित हैं क्योंकि शरीर की छमता के विरुद्ध किया गया श्रम कुष्ठ जैसे रोग को आमंत्रित कर सकता है।

प्रतिदिन नियम से शारीरिक साफ-सफाई करनी चाहिए। घर के आसपास की सफाई से भी कुष्ठ रोग का सीधा संबंध है। अतः इस संदर्भ में हमें अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजग-सचेत रहना चाहिए। सफाई के इस प्रथम सोपान के प्रति लापरवाही और गैर जिम्मेदारी का सीधा अर्थ है – कुष्ठ रोग के कीटाणुओं को सहज ही रोग उत्पत्ति की सुविधा प्रदान करना।

चर्म रोगों की जितनी जल्दी हो सके, चिकित्सा कराकर रोग मुक्त हो जाना चाहिए। चर्म रोग यदि पुराने हो जायें तो आगे चलकर कुष्ठ में परिवर्तित होकर रोगी को हलकान कर सकते हैं, जिससे जीवन नरक बन जाता है। मक्खियाँ भी इस रोग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का काम करती हैं। रोगी के मवाद, पीप, थूक, बलगम, घाव, फोड़ों पर से वे रोग के कीटाणुओं को लेकर स्वस्थ लोगों को अस्वस्थ कर देती हैं। मक्खियों से कुष्ठ रोग सहजता से फैलता है।

प्रारंभ में लक्षण प्रकट होते ही कुष्ठ रोगी की चिकित्सा प्रारंभ कर दी जाए तो जल्दी ही इस रोग से छुटकारा मिल जाता है। अन्यथा लंबे समय तक औषधि का सेवन करने के बाद कहीं रोग से मुक्ति मिल पाती है। फिर भी पूरे जीवन भर सावधानी बरतनी पड़ती है।

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