
मलेरिया का घरेलू उपचार ! मलेरिया रोग का घरेलू चिकित्सा
मलेरिया एक संक्रामक रोग है। मलेरिया रोग को फ़ैलाने में प्रोटोजोआ परजीवी का योगदान होता है। मलेरिया रोग मच्छर काटने से होता है। इस मच्छर के काटने पर जीवाणु कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है और वही अपना वंश वृद्धि करने लगता है। मलेरिया होने पर सांस फूलना, चक्कर आना की शिकायत रहती है। इसके अतिरिक्त सर्दी, बुखार और जुकाम भी हो जाता है। कुछ लोगों को मलेरिया में बेहोशी भी आ जाती है। इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है मलेरिया का घरेलू उपचार
1.- मलेरिया के रोगी के रक्त परीक्षण करने पर यदि रिपोर्ट ‘पॉजिटिव’ आए तो तुरंत मलेरिया की चिकित्सा में जुट जाने में ही भलाई है। मलेरिया की आशंका होने पर रोगी को रक्त परीक्षा के लिए भेजा जाता है। ऐसे में रिपोर्ट का इंतजार करना उचित नहीं है। रोगी की लक्षणों के आधार पर पहले ही चिकित्सा प्रारंभ कर देनी चाहिए ताकि चिकित्सा में विलंब होकर रोग उग्र अवस्था में न पहुँचने पाये। यदि मलेरिया ज्वर के कीटाणु रक्त परीक्षा में ना मिले तो मलेरिया से संबंधित औषधियां बंद कर देनी चाहिए और बुखार के अन्य कारणों की पड़ताल करके यथायोग्य औषधीयाँ प्रयोग करनी चाहिए।
2.- आजकल मच्छरों से बचाव के लिए बाजार में अनेक आधुनिक उपकरण उपलब्ध हो रहे हैं। उनका प्रयोग करने से रात को सोते समय मच्छरों के काटने का भय निर्मूल हो जाता है और मलेरिया होने का भय नहीं रहता। मच्छरों से बचाव के लिए ‘मच्छरदानी’ का प्रयोग करना ज्यादा हितकर है। मच्छरों को मारने वाले आधुनिक उपकरण प्रदुषण पैदा करते हैं। शुद्ध वायु पर उनका प्रतिकूल असर पड़ता है। ध्यान रखें – इनके दूरगामी परिणाम घातक भी हो सकते हैं। अतः इनका प्रयोग न करना ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित है। मछरदानी का प्रयोग अनुचित नहीं है। इसके प्रयोग से स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
3.- अधिकांशतः मलेरिया ज्वर से पीड़ित रोगियों को पित्त की वमन होती देखी जाती है। इस समय रोगी को प्यास भी बहुत लगती है। प्यास लगने का कारण है, वमन तथा शरीर से अत्यधिक पसीना निकल जाना। रोगी यदि ‘डिहाइड्रेशन’ का शिकार हो, तो उसको तत्काल ग्लूकोज मिला पर्याप्त पानी पिलाना चाहिए। जरूरी हो तो रोगी को नार्मल सेलाइन भी नस से प्रविष्ट करें।
4.- वमन, कै, मितली और प्यास हो तो रोगी को गर्म पानी पिलाने से लाभ मिलता है। रोगी को गर्म दूध पिलाना अतिशय गुणकारी प्रभाव पैदा करता है। लेकिन दूध ज्वर छूट जाने के बाद सेवन करने का निर्देश देना चाहिए। गर्म दूध से शरीर में गर्मी आ जाती है। ज्वर टूट जाने के बाद ही रोगी को कुछ खाने का आदेश देना हितकर होता है। सूजी की रोटी अथवा आटा मिली सूजी की रोटी इस समय देना उचित है। रोगी को भूलकर भी नया चावल खाने को न दें। पुराना चावल प्रयोग करना लाभदायक होता है। मलेरिया रोगी को दी जाने वाली सब्जियों के अंतर्गत कच्चे केले की सब्जी, परवल, केले के फूलों की सब्जी देना चाहिए।
5.- रोगी का पसीना पहले सूखे कपड़े से पोछें। उसके पश्चात स्वच्छ पानी में कपड़ा भिगोकर और निचोड़कर बीच-बीच में पोंछते रहने से एक तो शारीरिक स्वच्छता बनी रहती है और दूसरे शरीर का ताप भी प्रभावहीन रहता है। जरूरत समझें तो शरीर को पोंछने के लिए हल्का गुनगुना जल भी प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन अत्यधिक तेज गर्म जल कदापि प्रयोग न करें।
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6.- यह रोग काफी दुखदाई होता है, शरीर की हड्डी-हड्डी तोड़कर रख देता है। रोगी कुछ ही दिनों में कृशकाय और कमजोर हो जाता है। चिकित्सा के दौरान रोगी के इस पछ का भी ध्यान रखें। खान-पान की गड़बड़ी का दुष्प्रभाव ‘मलेरिया ज्वर’ पर पड़ सकता है। अतः खान-पान पर विशेष ध्यान दें। रोग यदि काफी पुराना हो चुका हो तो रोगी को दूध और फलों पर ही रखें। इस अवस्था में अन्न रोगी को दिया तो जा सकता है लेकिन प्रबल अथवा तीव्र ज्वर की अवस्था में अन्न कदापि सेवन करने के लिए न दें। तीखे मिर्च-मसाले युक्त खाद्य का भी निषेध रखें।
7.- ज्वर की अवस्था में अथवा ज्वर छूट जाने के बाद रोगी को बिस्तर पर पूर्ण आराम की अवस्था में रखें। सीलनयुक्त अंधेरे तथा दुर्गन्धयुक्त कमरे में रोगी को भूलकर भी न रखें। रोगी को हवादार खुले कमरे में साफ-सुथरे बिस्तर पर रखना चाहिए। मलेरिया रोग के समस्त कारणों का दमन करना चाहिए। आसपास यदि पानी के गड्ढे हो तो उनको भरवा दें। घर में यदि मच्छर हो तो घर में ‘डी डी टी’ का छिड़काव करायें। मलेरिया रोगी को यथासंभव सुबह शाम दो बार खुली हवा में भी टहलना चाहिए। रोगी यदि व्यायाम करने की स्थिति में हो तो हल्के व्यायाम करने का निर्देश दें। रोगी यदि व्यायाम न कर सके तो जबरदस्ती कराना उचित नहीं रहता है। ज्वर जब हो उस समय व्यायाम अथवा भ्रमण नहीं करना चाहिए।
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8.- यदि मलेरिया फैल रहा हो या मलेरिया फैलने की आशंका हो तो उस क्षेत्र को तत्काल बिना देर किए छोड़ देने में ही भलाई है। मलेरिया जिस स्थान से फैलने का भय हो, उन स्थानों पर मिट्टी का तेल अथवा ‘डी टी टी’ या फिर अन्य दवाइयों का छिड़काव कराने से मलेरिया होने की आशंका निर्मूल हो जाती है। बरसाती पानी की निकासी का उचित प्रबंध रहने से मलेरिया होने का खतरा नहीं रहता है। मलेरिया से बचाव का इससे बढ़िया उपाय और कोई नहीं है।
9.- रोग का नाश करने के लिए प्रयोग की जाने वाली एलोपैथिक औषधियां मलेरिया ज्वर में प्रयोग करने पर प्रभाव पैदा नहीं करती है। लेकिन यदि मलेरिया ज्वर न होते हुए भी इनको प्रयोग किया जाए तो यह नुकसानदेह भी हो सकती है। वैसे ‘कुनीन’ निश्चय ही नुकसान करती है। ‘कुनीन’ पसीना लाने का गुण रखती है। साधारण जीवन में यदि ‘कुनीन’ प्रयोग की जाये तो अधिक पसीना निकल जाने से रोगी को भारी कमजोरी हो सकती है। इसका हृदय पर भी गंभीर असर पड़ता है। यह अपने दुष्प्रभाव से रोगी को असमय मौत के किनारे लगाने में कामयाब हो सकती है।
10.- इस रोग के नाशक औषधियों के साथ रोगी को पर्याप्त मात्रा में दूध पिलाना चाहिए। गाय का दूध अथवा बकरी का दूध देना हितकर रहता है। मलेरिया ज्वर से पीड़ित रोगी पर आनंद भैरव रस अच्छा प्रभाव पैदा करता है। रोगी को आनंद भैरव रस की दो टिकियाँ शहद के साथ देनी चाहिए। टिकियाँ सेवन कराने के बाद 20 तुलसीपत्र, 20 काली मिर्च पानी में पका लें और थोड़ा सा बचने पर मिश्री मिलाकर सेवन करायें। काली मिर्च पीसकर उबालने से सही फल मिलता है।
आयुर्वेद में ‘संखिया’ मलेरिया की अचूक रामबाण औषधि है। यकृत और प्लीहा पर इसका बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि अच्छा प्रभाव पड़ता है। देखा जाए तो यह घातक भी हो सकता है। इसलिए इसको हमेशा सावधानी और सतर्कता के साथ सेवन कराना चाहिए। रोगी का बलाबल देखना भी अनिवार्य है। इस संदर्भ में मलेरिया रोगी को ‘सिनकोना’ की छाल का काढ़ा बनाकर देना भी अतिशय गुणकारी प्रभाव रखता है।