तुलसी के फायदे और बेहतरीन औषधीय गुण

Tulsi,Basil

तुलसी का पौधा सदाहरित होता है अर्थात सदैव हरा भरा जाता है। साधारणता मार्च से जून तक इसे लगाते हैं सितम्बर तथा अक्टूबर में यह फूलता है। सारा  पौधा सुगंधित मंजरियों से लग जाता है। जाड़े के दिनों में इसके बीज पकते हैं, इसे वर्ष के बारह मासों में किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है। सामान्यतः इसमें पुष्प शीतकाल में आते हैं। तुलसी के पौधे तीव्र गंध युक्त होते हैं, जिनके शाखाये सीधी फैले हुए रहती हैं। तुलसी को हिंदू धर्म में जगत जननी का पद प्राप्त है। तुलसी शब्द की विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से तुलना की जा सके वह तुलसी है तुलसी को वृंदा भी कहा गया है  तुलसी के महिमा और कारण शक्ति के प्रभावों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं सर्व रोग निवारक तथा जीवनी शक्ति संवर्धक इस औषधि को संभवत प्रत्यक्ष दे माना जा सकता है। इसी तथ्य पर आधारित है कि ऐसी सस्ती सुलभ और सुंदर उपयोगी वनस्पति मनुष्य समुदाय के लिए कोई और अन्य नहीं है।
तुलसी का दंत रोगों में लाभकारी उपयोग होता है। पायरिया, मसूड़ों से खून आना, दांतो के दर्द में, दांतों के हिलने में और दांतों मसूड़ों के इसी प्रकार अन्य रोग में तुलसी के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए तुलसीदल 15 – 20 लेकर पीस लेते हैं, एक चम्मच में पीसी सोंठ और एक चम्मच सरसों का तेल से तुलसी के पत्तों में मिला देते हैं, इस मिश्रण से दातों का मंजन करते हैं या लेप लगाते हैं। इस प्रयोग को करने से दांतों की बीमारियों को दूर करने में बड़ी सहायता मिलती है।
तुलसी के रस एक चम्मच में निकालकर उसे एक कप पानी में मिला लेते हैं। इस तुलसी मिश्रित जल को मुंह में भरकर कुछ समय रखते हैं, और इस पानी को मुंह में भर कर कुल्ला करते हैं। इस प्रयोग को कुछ दिनों तक निरंतर करते रहने से दांतों मसूढ़ों तथा अन्य रोगों में बहुत लाभ होता है। तुलसी के रस को हल्के गर्म गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करने से और गले में किसी प्रकार के प्रयोग कुल्ले करने गरारे करने से या मुख्य को जल से प्रक्षालन करने से मुखागत विशेषकर कंठ गले के विकारों में और खासतौर से गले की खराश गला बैठना और गले कि इसी तरह की अन्य बीमारियों में उपयोगी है। इस तुलसी रस युक्त जल में यदि सामान्य घरेलू हल्दी और घर में खाना वाले नमक दोनों पिसे हुए एक चुटकी भर मिला दिए जाएं तो यह मिश्रण गले के रोगो में बहुत लाभदायक होता है। इससे गले तथा दांतो के रोगो में प्रयोग किया जाता है। इस से गले में टॉन्सिल बढ़ जाने पर भी उपचार करने में सहायता मिलती है। मुख दांतो और गले में किसी प्रकार के जीवाणु जनित संक्रमण में तुलसी के रस को हल्के गुनगुने जल में मिला कर कुल्ला करने, गरारे करने या अन्य रूप में प्रयोग करने से बहुत फायदा होता है।
तुलसी मलेरिया विरोधी है। तुलसी के पौधे को घर के समीप आरोपित करते हैं। इसे मच्छर प्रतिरोधी  वनस्पति मानी जाती हैं तुलसी के पौधे का वातावरण में जीवाणु संक्रमण प्रभाव होता है। यह तुलसी के रस का लेप करने से मच्छर मनुष्य को नहीं काटते और मुख द्वारा ग्रहण किए जाने पर उन्हें तुलसी स्वरस के सक्रिय रासायनिक तत्व नष्ट कर देते हैं। तुलसी के बीज रसायन गुण वाले हैं इसके प्रयोग से शक्ति प्राप्त होती है।
 तुलसी बीज का चूर्ण सामान्य दुर्बलता में दिया जाता है। रोगों के पश्चात होने वाले दुर्बलता में बीजों को सेवन कराया जाना लाभप्रद होता है। तुलसी के पत्र, मूल और बीज उपयोगी होते हैं पौधे के इन अंगो को सुखाकर मुख्यबंद पात्रों में सूखने के तथा ठंडे स्थानों में रखा जाता है। इस संग्रहीत द्रव्य को 1 वर्ष तक औषधीय प्रयोग में लाया जा सकता है ताजी तुलसी के पत्ते बहुत उपयोगी होते हैं।
शरीर के बाहरी कृमियों में तुलसी के पत्ते या बीजों का लेप किया जाता है यह अग्निमंदता, किसी भी प्रकार के उदरशूल और आंतों के कृमियो में उपयोगी हैं। तुलसी के बीजों को प्रवाहिका में देने से तुरंत लाभ होता है।
तुलसी के सेवन से छाती में सर्दी का असर नहीं हो पाता है और स्वास मार्ग, कंठ आदि में जो कफ जमा होता है और कई तरह से कष्ट उत्पन्न करता है वह निकलने लगता है। जिससे रोगी को आराम का अनुभव होता है, इसलिए तुलसी के पत्ते और तुलसी का रस स्वास संस्थान के विकारों में अति लाभप्रद है, क्योंकि यह जीवाणु संक्रमण विरोधी है और कफ निस्सारक, कास स्वास नाशक एवं स्वास संबंधित रोगों में प्रभाव करता है। सफेद तुलसी गर्म और पाचक गुण वाली है। बालकों के सर्दी जुकाम के रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह काली तुलसी कफ निस्सारक यानी जमे हुए कफ बलगम को बाहर निकालने वाली और बुखार को दूर करने वाली होती है। खांसी तथा बुखार में बहुत प्रयोग किया जाता है। यह काली तुलसी इन बीमारियों में कई प्रकार तथा रूपों में उपचार हेतु प्रयोग की जाती है इसमें कई महत्वपूर्ण औषधीय गुण होते हैं।
तुलसी में कुछ विशिष्ट गुण पाए जाते हैं, जिनके कारण यह शरीर की विद्युतीय संरचना को सीधे प्रभावित करती हैं। तुलसी को दानों की तरह काटकर जो माला पिरोकर बनाई जाती हैं उसको पहनने के काम में लेते हैं। तुलसी माला का धारण बहुत प्रभावशाली माना गया है। तुलसी लकड़ी से बने दानों की माला पहनने से शरीर में विद्युत शक्ति का प्रवाह बढ़ता है और जीव कोसों द्वारा उनके धारण करने की सामर्थ्य में वृद्धि होती है। इसे धारण करने मात्र से बहुत से लोग इस प्रभाव में आक्रमण करने के पूर्व ही समाप्त हो जाते हैं। तुलसी माला के प्रभाव से माला पहनने वाले व्यक्ति की शक्ति बढ़ती है वृद्धि होती है।