‘तुलसी’ शब्द की विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है की जिस वनस्पति की किसी से तुलना की जा सके, वह तुलसी है। तुलसी को हिन्दू धर्म में जगत जननी का स्थान प्राप्त है। उसे बृंदा भी कहा गया है। तुलसी के महात्म्यों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े है। सर्वरोग निवारक तथा जीवनीय शक्ति संवर्धक यह औषधि जगत में प्रत्यक्ष है। चलिए जानते है तुलसी का रोगो में उपयोग।
पेशाब में जलन – तुलसी के बीज के चूर्ण का सेवन करने से पेशाब में जलन और पेशाब करने की कठिनाई में तुरंत लाभ होता है। मूत्रकृच्छ पेशाब में जलन तथा कठिनाई होने की विकृति में तुलसी बीज 6 ग्राम जल 15 ग्राम रात को भिगोकर रखकर तथा सवेरे छानकर पिलाते है।
श्वास रोग – श्वास रोग में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है। सर्दी – जुकाम में तुलसी के पंचांग तथा अदरक की गाँठ – इनको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाते है , और इसे रोगी को दिन में दो -तीन बार पीने का सलाह दें। इससे श्वास , कास और कण्ठरोग में लाभ होता है।
पुरानी खांसी – पुरानी खांसी और दमा में तुलसी परम गुणकारी है। तुलसी के 10 पत्ते और अडूसा (वसा ) के 3 पत्ते ,1 काली मिर्च ,अदरक या सोंठ 4-6 टुकड़े ( छोटे-छोटे ), गिलोय की 6 इंच लम्बी काण्ड – इन सब को कुचल – मसल कर लगभग डेढ़ किलो पानी में पकायें। जब आधा गिलास पानी पकते हुए शेष रह जाये तो उसमें 10-15 ग्राम गुड़ मिला देते है। इस मिश्रण की 3 खुराक तैयार कर लें। और रोगी को 4-4 घण्टे के अन्तर से पिलायें। इससे पुरानी खांसी और दमा में बहुत लाभ होता है
सर्दी – जुकाम – तुलसी के पत्ते सर्दी – जुकाम में बहुत लाभदायक होता है। यदि आप सर्दी – जुकाम से पीड़ित है तो तुलसी के कुछ पत्ते चबा ले , इससे सर्दी – जुकाम में राहत मिलेगी। बरसात के दिनों में सर्दी – जुकाम , मलेरिया और डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। इस समय तुलसी के पत्ते के पानी में उबाल कर सेवन करना चाहिए। इसका सेवन करने से आप बुखार से बचे रहेगें।
रतौंधी – विटामिन A की कमी से रतौंधी का रोग होता है। रतौंधी में व्यक्ति को दिन में दिखायी देता है लेकिन रात में दिखायी नहीं देता है। आपको बता दें रतौंधी की समस्या में तुलसी के पत्तो के रस में काली मिर्च के चूर्ण को घोटकर बत्ती बना लें अथवा वटी (टिकिया) तैयार कर सूखा लीजिये। इस वटी को शहद में घिसकर सायंकाल आँखों में अंजन करें। इस प्रयोग को करने से रतौंधी में बहुत फायदा होता है।
चर्मरोग – चर्मरोग में तुलसी के बाह्य प्रयोग किए जाते है। चर्मरोग में तुलसी के पत्तों को पीसकर,नींबू के रस में मिलाकर लेप करें। इसका लेप करने से दाद , वातरक्त और कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इसके आलावा तुलसी के पत्ते के रस में गौघृत और चुना मिलाकर लेप करें।
शरीर में सफेद दाग , चेहरे की झाँई , कीलें, चेहरे का कुरूप हो जाने पर तुलसी के पत्ते के रस में बराबर मात्रा में नींबू का रस और कसौंदी का रस लेकर एक ताँबे के बरतन में डालकर 24 घण्टे के लिए धुप में रख दें। यह मिश्रण जब कुछ गाढ़ा हो जाये तब इसका बाह्य प्रयोग करते है। इसको चेहरे पर लगाने से श्वेत कुष्ठ में भी लाभ होने लगता है। इस योग को चेहरे पर लगाने से चेहरे पर दाग और अन्य चर्म विकार साफ होकर मुख पर सुन्दरता आ जाती है।